मच्छर मुझे गाना सुनाते हैं...
मच्छर मुझे गाना सुनाते हैं
आकर पास कानों के मेरे
कुछ बड़ा जोर से गुनगुनाते हैं
मच्छर मुझे गाना सुनाते हैं।।
सर से लेकर पांव तक
बैठ मुझ पर यह आराम फरमाते हैं
इधर उधर काट देते
हम खुजलाते रह जाते हैं
मच्छर मुझे गाना सुनाते हैं।।
भिन-भिन की आवाज़ कर
कानों में दर्द ये कर जाते हैं
हमें अपने गाने में उलझा कर
खून पीने की ताक में
हम पर कब्जा जमाते हैं
मच्छर मुझे गाना सुनाते हैं।।
गाकर गानों का बेसुरा राग
ताली हमसे ये बजवाते हैं
बड़े ढीठ होते हैं यह
बार-बार हमसे पीट कर भी
हमारे पास वापस लौट आते हैं
आकर नए-नए बेसुरे राग ये अल्पाते हैं
मच्छर मुझे गाना सुनाते हैं।।
बहता खून इनमें भी अपना है
मार दें इन्हें कैसे, दर्द ये भी अपना है
जी करता है मैं भी सुनाऊं इन्हें गाना
लगा कर इनके कानों में हेड फोन्स
बजाऊं कोई गाना जैसे छम्मा छम्मा
हो कोई तरीका जो ये ना गुनगुनाए
कान पर आकर ना भिनभिनाए
यही है मेरी आखिरी सपना
ना सुनाए मुझे गाना ये अपना।।
जाने कहां से आते हैं.....
मच्छर मुझे गाना सुनाते हैं।।
प्रतियोगिता - 01 अप्रैल 2022
लेखिका - कंचन सिंगला ©®
Fareha Sameen
02-Apr-2022 08:09 PM
😅Buhat acha likha hai👌
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Niraj Pandey
02-Apr-2022 10:54 AM
बहुत खूब
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Shnaya
02-Apr-2022 02:03 AM
Very nice 👌
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